ऑक्सफोर्ड के सफल परीक्षण से सितंबर तक कोरोना की वैक्सीन मिलने की संभावना

ऑक्सफोर्ड के सफल परीक्षण से सितंबर तक कोरोना की वैक्सीन मिलने की संभावना

नरजिस हुसैन

पूरी दुनिया में इस वक्त कोरोना वायरस को मात देने के लिए वैक्सीन बनाने की दौड़ तेज हो गई है। इस दौड़ में अब तक सबसे आगे है ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी का जेनर इंस्टीट्यूट जहां वैक्सीन बनाने का काम तकरीबन खत्म पर है। अमेरिका और ब्रिटेन के अलावा भी तमाम और देशों में इस वक्त कोरोना और उसकी वैक्सीन पर ही काम हो रहा है। ऑक्सफोर्ड का जेनर इंस्टीट्यूट पहले भी इबोला, मर्स और मलेरिया के वैक्सीन का मानव परीक्षण कर चुका है।

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दरअसल, ऑक्सफोर्ड युनिवर्सिटी के जेनर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने पिछले साल ही एक वैक्सीन बनाई थी अब उन्हें लगता है कि उससे मिलता-जुलता मिश्रण कोरोना वारयस में इस्तेमाल किया जा सकता है जो इंसानों के लिए नुकसानदेय नहीं होगा। अगले महीने यानी जून के आखिर तक यहां 5,000 लोगों पर टेस्ट किया जाएगा। पहले चरण का परीक्षण 1,100 लोगों पर कर लिया गया है, अब दूसरे और तीसरे चरण में 5,000 लोगों पर परीक्षण करना बाकी है। वैक्सीन पर काम करने वाले वैज्ञानिकों की टीम का कहना है कि उनकी बनाई वैक्सीन को जैसे ही इमर्जेंसी अप्रूवल मिलती है वैसे ही कोरोना वैक्सीन तैयार हो जाएगी और सिंतबर तक यह वैक्सीन बाजारों में आ जाएगी।

ऑक्सफोर्ड के जेनर इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों की बनाई वैक्सीन, अमेरिका स्थित मोंटाना के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के वैज्ञानिकों ने जब छह बंदरों को दी और उसके बाद उन्हें कोरोना वायरस की भारी डोज दी, करीब 28 दिनों बाद भी सभी छह बंदर चुस्त दुरुस्त पाए गए। इससे पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों में उम्मीद की लहर दौड़ पड़ी है। लेकिन, फिलहाल इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि वैक्सीन जो इम्युनिटी बंदरों को दे पा रही है उतनी ही इंसानों को भी दे पाएगी या नहीं। इसके अलावा, इसी बीच चीन की एक वैक्सीन कंपनी साइनो वैक ने भी हाल ही में 144 लोगों पर क्लिनिकल परीक्षण किया है लेकिन, उसका दावा है कि उनकी बनाई वैक्सीन का सबसे अच्छा असर बंदरों पर ही हो रहा है।

वहीं भारत के पुणे स्थित सिरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया का कहना है कि ऑक्सफोर्ड की यह वैक्सीन जैसे ही अपने आखिरी चरण में पंहुचेगी वैसे ही उसकी मैनुफैक्चरिंग भारत में शुरू कर दी जाएगी। इस कंपनी ने दो कंपनियों के साथ मिलकर कोरोना का परीक्षण किया था। पहला, ऑक्सफोर्ड दूसरा अमेरिका की बायोटेक कंपनी कोडाजिनेक्स और तीसरा अपना खुद का बीसीजी वैक्सीन। सिरम इसी महीने में मानव परीक्षण भी करने जा रही है। ये बीसीजी के कॉम्बिनेशन को मिलाकर ऐसी वैक्सीन बनाने की तैयारी में है जो मानव शरीर में वायरस के नुकसान को कम करे। इसमें इनकी मदद भारत सरकार का बायोटेक्नोलॉजी विभाग भी कर रहा है। बहरहाल, कंपनी की कोशिश है कि जेनर इंस्टीट्यूट के परीक्षण के सफल होते ही फौरन प्रोडेक्शन का काम शुरू हो जाए, ताकि सिंतबर या अक्तूबर तक कोरोना की वैक्सीन बाजार में आ जाए। सिरम का फिलहाल कहना है कि देश में यह वैक्सीन 1,000 रुपए में उपलब्ध कराए जाने की वह पूरी कोशिश करेगी।

इसके अलावा भारतीय और अमेरिकी कंपनियां एक साथ मिलकर कम से कम तीन अलग-अलग कोरोना वायरस वैक्सीन पर काम कर रही हैं।

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भारत में केरल स्थित पंकजाकस्थूरी हर्बल रिसर्च में बनी जिंगीविर-एच टैबलेट जो सांस संबंधी बीमारियों में इस्तेमाल की जाती है उसे Clinical Trial Registry of India ने कोविड पॉजिटिव युवाओं पर परीक्षण करने की मंजूरी दे दी है। Clinical Trial Registry of India, Indian Council of Medical Research (ICMR) के अधीन आता है।

कोरोना वैक्सीन की इस दौड़ में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) भी है जो सबसे अलग तरीके से इससे निपटने की तैयारी कर रहा है। यूएई के आबू धाबी स्थित स्टेम सेल सेंटर ने हाल ही में कोविड-19 के मरीजों को ठीक करने के लिए स्टेम सेल चिकित्सा खोजी है। इसमें शोधार्थी और वैज्ञानिक, मरीज के ही शरीर के खून से स्टेम सेल लेकर उसे एक्टीवेट करेंगे और उसे दोबारा मरीज को देंगे। यहां के वैज्ञानिकों ने सेल थैरेपी, दवा और स्टेम सेल के मेडिकल परीक्षण कर लिए हैं और इनका कहना है कि अपनी इस अनोखी चिकित्सा से यूएई दुनिया से कोविड का खात्मा कर देगा।

फिलहाल पूरी दुनिया में इस वक्त कोरोना के 90 से भी ज्यादा वैक्सीन परीक्षण अलग-अलग चरणों में पहुंच चुके हैं, और इनमें से छह परीक्षण ही फिलहाल इंसानों के लिए सुरक्षित पाए गए हैं। अमेरिका के सिएटल में भी मानव परीक्षण हो चुका है, ऑक्सफोर्ड में 1,100 लोगों पर पहले ही यह परीक्षण हो चुका है, फार्मा कंपनी सनोफी और ग्लैक्सो स्मिथक्लिन भी मिलकर वैक्सीन पर काम कर रही है इसके अलावा आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने भी जावनरों पर अप्रैल के आखिर में परीक्षण कर लिया है। हालांकि, यह बात फ्रिक की है कि अब तक डब्ल्युएचओ ने इनमें से किसी भी परीक्षण और उसके मानव शरीर पर असर के बारे में साफतौर से कोई उम्मीद नहीं जताई है।

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वैक्सीन बनाने में इतनी शिद्दत से लगी ये कंपनियां देर-सवेर जरूर वैक्सीन दुनिया को देंगी लेकिन, क्या उस वक्त तक इनका प्रोडक्शन इतना हो पाएगा कि बड़े पैमाने पर इसको लोगों तक पहुंचाया जा सके। क्योंकि, अभी तक आंकड़ा बताता है कि वैक्सीन अगर अभी आती है तो करीब दुनिया की 60-70 फीसद आबादी को इसकी एकदम जरूरत पड़ेगी। दुनिया के अलग-अलग देश किस तरह इसे अपनी जनता तक पहुंचा पाएंगे यह एक बड़ा सवाल है। फिर शुरू में कम प्रोडक्शन की वजह से देशों की प्राथमिकता है डॉक्टरों और नर्सों की जान बचाना तो पहली कुछ खेप तो हेल्थकर्मियों के बचाव में ही चली जाएगी। बुजुर्ग जिनकी जान बिल्कुल जोखिम में है उन्हें भी इस वैक्सीन की जल्द जरूरत है। सरकारों को वैक्सीन के इंतजार के बीच ही अपनी प्राथमिकताओं को भी तय कर लेना होगा नहीं तो ऐसा न हो कि वैक्सीन आए और उसके बाद उसका कहां और कैसे इस्तेमाल हो यही तय करने में बाकी का वक्त भी हाथ से निकल जाए।

 

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